जयपुर, 18 अप्रेल, 2022 (न्यूज़ टीम राजस्थान): मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि राजस्थान जैसे प्रदेश में भविष्य की पेयजल एवं सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना का दर्जा दिया जाना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा इस परियोजना को लेकर लगाए जा रहे तकनीकी आक्षेप राजस्थान जैसे जटिल भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं। ईआरसीपी की तुलना दूसरे राज्यों की योजनाओं से करना उचित नहीं है।
गहलोत रविवार को मुख्यमंत्री निवास पर इस परियोजना को लेकर अधिकारियों के साथ उच्च स्तरीय बैठक में संबोधित कर रहे थे। बैठक में मुख्यमंत्री ने ईआरसीपी के तकनीकी पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) वर्ष 2017 में केन्द्रीय जल आयोग को भेज दी गई थी। ईआरसीपी से प्रदेश के 13 जिलों में पेयजल उपलब्धता सुनिश्चित होगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश के पूर्वी भाग में जहां पानी की विकट समस्या हैं वहां जल जीवन मिशन के मापदंडों के अनुसार 55 लीटर पेयजल प्रति व्यक्ति प्रति दिन उपलब्ध कराने के लिए ईआरसीपी बेहद अहम है। 37 हजार 247 करोड़ रूपए की इस परियोजना में 26 वृहद् एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से 0.8 लाख हैक्टेयर विद्यमान सिंचित क्षेत्रों का पुनरूद्धार तथा 2 लाख हैक्टेयर नए क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित है। प्रदेश के 40 प्रतिशत भूभाग को लाभान्वित करने वाले इस प्रोजेक्ट को अभी तक राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं किया गया है। इससे भविष्य में राजस्थान को गंभीर पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है। ऎसे में, केन्द्र सरकार को चाहिए कि राजस्थान जैसे सूखाग्रस्त राज्य को पेयजल संकट से बचाने के लिए ईआरसीपी को जल्द से जल्द राष्ट्रीय परियोजना घोषित करे।
गहलोत ने कहा कि परियोजना की डीपीआर में सभी मापदंड केन्द्रीय जल आयोग की गाइडलाइन के अनुरूप ही रखे गए हैं। भारत सरकार द्वारा पूर्व में अन्य राज्यों की 16 बहुउद्देशीय योजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिया गया है। हाल ही में मध्यप्रदेश एवं उत्तर प्रदेश को लाभ पहुंचाने वाली 44 हजार करोड़ रूपए की केन-बेतवा परियोजना को मंजूरी दी गई है, लेकिन क्षेत्रफल की दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान की किसी भी बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राजस्थान ऎसा प्रदेश है जिसने बरसों तक अकाल की पीड़ा का सामना किया है। जनता यह नहीं भूली है कि आज से करीब 25 साल पहले जब बीसलपुर बांध नहीं बना था तब कई शहरों में 7-7 दिन तक पीने का पानी उपलब्ध नहीं हो पाता था। बीसलपुर बांध में जयपुर, अजमेर, टोंक जिलों के लिये पेयजल की उपलब्धता 2027 तक ही है। जयपुर जिले का रामगढ़ बांध जिससे जयपुर शहर एवं आस-पास के गांवों में पेयजल की आपूर्ति होती थी अब सूख चुका है। परियोजना में अतिरिक्त पानी की उपलब्धता होने पर रामगढ़ बांध में भी पानी देने का विकल्प प्रस्तावित है।
गहलोत ने कहा कि मरू प्रदेश होने के कारण पेयजल एवं अतिरिक्त सिंचित क्षेत्र सृजन किये जाने हेतु राजस्थान राज्य में गंभीर प्रयास किये जाने की नितान्त आवश्यकता है। परियोजना के महत्व को देखते हुए राज्य सरकार इसका कार्य जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है। यही वजह है कि परियोजना का कार्य समयबद्ध एवं गुणवत्ता पूर्ण तरीके से कराने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना निगम के गठन की घोषणा बजट में की गई है। साथ ही, 9 हजार 600 करोड़ रूपए के काम हाथ में लेने प्रस्तावित किए गए हैं। इस पर अभी तक 1 हजार करोड़ रूपए खर्च कर भी दिए गए हैं।
बैठक में प्रमुख शासन सचिव वित्त अखिल अरोरा, सचिव जल संसाधन डॉ. पृथ्वीराज, अतिरिक्त मुख्य अभियंता जल संसाधन रवि सोलंकी एवं अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
गहलोत रविवार को मुख्यमंत्री निवास पर इस परियोजना को लेकर अधिकारियों के साथ उच्च स्तरीय बैठक में संबोधित कर रहे थे। बैठक में मुख्यमंत्री ने ईआरसीपी के तकनीकी पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) वर्ष 2017 में केन्द्रीय जल आयोग को भेज दी गई थी। ईआरसीपी से प्रदेश के 13 जिलों में पेयजल उपलब्धता सुनिश्चित होगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश के पूर्वी भाग में जहां पानी की विकट समस्या हैं वहां जल जीवन मिशन के मापदंडों के अनुसार 55 लीटर पेयजल प्रति व्यक्ति प्रति दिन उपलब्ध कराने के लिए ईआरसीपी बेहद अहम है। 37 हजार 247 करोड़ रूपए की इस परियोजना में 26 वृहद् एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से 0.8 लाख हैक्टेयर विद्यमान सिंचित क्षेत्रों का पुनरूद्धार तथा 2 लाख हैक्टेयर नए क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित है। प्रदेश के 40 प्रतिशत भूभाग को लाभान्वित करने वाले इस प्रोजेक्ट को अभी तक राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं किया गया है। इससे भविष्य में राजस्थान को गंभीर पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है। ऎसे में, केन्द्र सरकार को चाहिए कि राजस्थान जैसे सूखाग्रस्त राज्य को पेयजल संकट से बचाने के लिए ईआरसीपी को जल्द से जल्द राष्ट्रीय परियोजना घोषित करे।
गहलोत ने कहा कि परियोजना की डीपीआर में सभी मापदंड केन्द्रीय जल आयोग की गाइडलाइन के अनुरूप ही रखे गए हैं। भारत सरकार द्वारा पूर्व में अन्य राज्यों की 16 बहुउद्देशीय योजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिया गया है। हाल ही में मध्यप्रदेश एवं उत्तर प्रदेश को लाभ पहुंचाने वाली 44 हजार करोड़ रूपए की केन-बेतवा परियोजना को मंजूरी दी गई है, लेकिन क्षेत्रफल की दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान की किसी भी बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राजस्थान ऎसा प्रदेश है जिसने बरसों तक अकाल की पीड़ा का सामना किया है। जनता यह नहीं भूली है कि आज से करीब 25 साल पहले जब बीसलपुर बांध नहीं बना था तब कई शहरों में 7-7 दिन तक पीने का पानी उपलब्ध नहीं हो पाता था। बीसलपुर बांध में जयपुर, अजमेर, टोंक जिलों के लिये पेयजल की उपलब्धता 2027 तक ही है। जयपुर जिले का रामगढ़ बांध जिससे जयपुर शहर एवं आस-पास के गांवों में पेयजल की आपूर्ति होती थी अब सूख चुका है। परियोजना में अतिरिक्त पानी की उपलब्धता होने पर रामगढ़ बांध में भी पानी देने का विकल्प प्रस्तावित है।
गहलोत ने कहा कि मरू प्रदेश होने के कारण पेयजल एवं अतिरिक्त सिंचित क्षेत्र सृजन किये जाने हेतु राजस्थान राज्य में गंभीर प्रयास किये जाने की नितान्त आवश्यकता है। परियोजना के महत्व को देखते हुए राज्य सरकार इसका कार्य जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है। यही वजह है कि परियोजना का कार्य समयबद्ध एवं गुणवत्ता पूर्ण तरीके से कराने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना निगम के गठन की घोषणा बजट में की गई है। साथ ही, 9 हजार 600 करोड़ रूपए के काम हाथ में लेने प्रस्तावित किए गए हैं। इस पर अभी तक 1 हजार करोड़ रूपए खर्च कर भी दिए गए हैं।
बैठक में प्रमुख शासन सचिव वित्त अखिल अरोरा, सचिव जल संसाधन डॉ. पृथ्वीराज, अतिरिक्त मुख्य अभियंता जल संसाधन रवि सोलंकी एवं अन्य अधिकारी उपस्थित थे।